जीवनसाथी के बिना जिंदगी**

 जीवनसाथी के बिना जिंदगी**


मैने एक आदमी को बदलते हुए देखा है,

औरत के जाने के बाद तन्हाइयों में जलते हुए देखा है।


जिनके सख्त रवैये से सहमा रहता था घर, उस,

कठोर कहे जाने वाले मर्द को पिघलते हुए देखा है।


जिसे ईश्वर में यकीन ही नहीं था कभी , उसे,

मन्दिर मन्दिर नंगे पांव चलते हुए देखा है।


हां सच है ये मैने खुद अपनी इन आंखो से,

एक सख्त शख्सियत को नरमी में ढलते हुए देखा है।


जिन लड़खड़ाते कदमों को एक औरत सम्भाल लेती है,

उन कदमों को मैने खुद ही संभलते हुए देखा है।


एक औरत की सब जिम्मेदारियां उठा ली है अब,

मैने उन्हे व्रत उपवास करते हुए देखा है।


अपना गम भूल जाते हैं हमारी खुशियों के लिए वो,

एक पिता हृदय में भी मैने, मेरी मां को मचलते देखा है।


हां मां के जाने के बाद इन पांच महीनों में,

मैने अपने पापा को बदलते हुए देखा है।














माला चौधरी