आँखों में भरी है गर्द कोई
फिर दिल में उठा है दर्द कोई
घाव सारे पुराने हरे हो गए
याद आया है फिर बेदर्द कोई
रह रह दिल में उठती टीस मेरे
रात जलती हो जैसे सर्द कोई
मेरे ज़ख्मी जिगर का हाल है ये
घाव पककर हुआ हो जर्द कोई
कैसे इतनी जलन मैं सह पाऊंगी
अब तो मरहम रखे हमदर्द कोई
माला चौधरी