दीप बुझाये , दिल जलाए
गम में तेरे अश्क बहाए
नींद के ऐसे भाग कहां
जो मेरी आंखो में आए
हैं कई गमों के पहरे इनपे
कई सिसकियां इन्हे जगाएं
चला गया जो वक्त हाथ से
बोलो कैसे उसको पाए
कितने जख्मों से छलनी दिल
कैसे इतने किस्से तुम्हे सुनाएं
मेरे अपनों ने तो बहुत दिए हैं
कुछ गैरों से भी धोखा खाएं
दफना दे सारे सपनें " माला "
चल दिल को कब्रिस्तान बनाएं
माला चौधरी